सास भी कभी बहू थी | sass bi kabhi Bhau thi

नेहा की शादी को अभी थोड़े महीने ही हुए थे। नेहा ससुराल में डरी डरी सी रहती थी। उसकी सास ऐसे तो बहुत अच्छी थी। पर नेहा को डरी सहमी सी देखकर उन्हें खटक रहा था।

आज उनके घर मंगल पाठ था। नेहा ने कभी इतना प्रसाद नहीं बनाया था। उसे इसके बारे में जानकारी नहीं थी। उसकी सास ने अपनी बहू के चेहरे से यह भाप लिया था। और प्रसाद बहार से मंगवा लिया था। पर यह बात नेहा को पता नहीं थी।

नेहा की सास उर्मिला जी ने भी उसे नहीं बताया था वो चाहती थी नेहा खुद आकर उनसे खुलकर बात करें आखिर वो भी कभी किसी की बहू थी। उन्होंने जो सहन किया है वो अपनी बहू के साथ नहीं करना चाहती थी।

नेहा हिम्मत करके आती है। पर कुछ बोल नहीं पाती है। मम्मी जी वो.. नेहा इतना ही बोलती है।

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उर्मिला जी नेहा की तरफ देखकर अरे नेहा बेटा मैं तुम्हें बताना ही भुल गई थी। वो प्रसाद मैंने बाहर से मंगवा लिया है तुम टेंशन मत लेना।

नेहा यह सुनकर अपनी नम आंखों से सास को देखने लगती है। भागकर उनके गले लगकर थैंक्यू मम्मी जी मेरी यह कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

उर्मिला जी उसके सर पर चपत लगाती हुई पागल लड़की इतनी सी बात नहीं बता सकती थी तु। सास नहीं मां हूं तेरी। मैंने जो अपनी सास से सहन किया है मैं वो सहन तुझे नहीं करने दूंगी क्योंकि सास भी कभी बहू थी समझी?

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नेहा हां मैं सर हिला देती है और मुस्कुराती हुई एक बार फिर उर्मिला जी के गले लग जाती है।

धन्यवाद

(Kahanisangrah.in)

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