दीदी कल भाईदूज है तो रवि भाई भी आएंगे इसलिए मैंने उनके लिए अपने हाथ से मिठाई बना दी। कल आप उनको दे देना दीदी। इतना कहकर आशा अपनी जेठानी सुलेखा के कमरे से निकल कर बाहर की तरफ चली जाती है।
सुलेखा आशा की बात सुनकर सोच में पड़ जाती है। आशा ने ऐसा क्यों बोला है। अचानक से सुलेखा को याद आता है कि आशा का कोई भाई नहीं है। और वो बचपन से अपने मासी के बेटे को ही भाईदूज का तिलक लगाती आई है। पर उसकी शादी के बाद सब ने मुंह मोड़ा लिया
है।
सुलेखा सुबह जल्दी उठकर स्नान करके अच्छी सी तैयार होकर आशा के कमरे की तरफ जाती है।
आशा अपने पलंग पर गुमसुम सी बैठी होती है। सुलेखा अन्दर आती है हाथ में एक बैग होता है।
आशा सुलेखा इतना बोलती है आशा सुलेखा की साइड चेहरा करके दीदी आप?
सुलेखा मुस्कुराती हुई आशा ऐसे गुमसुम सी क्यों बैठी हो तुम क्या हुआ आज तो भाईदूज और रवि भी आने वाला तुम अभी तक तैयार क्यों नहीं हुई।
दी आपको पता ही है मेरा कोई भाई नहीं है। सब मुझे अपशकुन मानते हैं मेरे भाई नहीं है इसलिए मुझे भाईदूज की दिन अन्दर रहने को ही कहते है।
सुलेखा लंबी सांस छोड़कर आशा तुझे किसने कहा तुम्हारा भाई नहीं है। भाई बहन का रिश्ता खून का हो यह जरूरी तो नहीं ना बस वो दोनों को यह पवित्र बंधन निभाना आना चाहिए। रवि आज से तुम्हारा भी भाई है आशा और वो भी तुम जैसी बहन पाकर बहुत खुश हैं इतना कहकर आशा को सुलेखा गले लगा लेती है।
तो यह लो जल्दी से तैयार हो जाओ। सुलेखा आशा को एक साड़ी देती है। आशा के चेहरे पर आज अलग ही मुस्कान होती है।
रवि भी एक साथ दो बहनों का प्यार देखकर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है आशा और सुलेखा दोनों का खून अलग था पर रिश्ता एक हो गया था बहन का रिश्ता
आशा और सुलेखा रवि को टिका करके मिठाई खिलाती है और अपनी तरफ से दोनों अपने भाई को शगुन के तोर पर गिफ्ट देती है।
रवि भी अपने दोनों बहनों के लिए गिफ्ट लाता है।
आज आशा को एक भाई मिल गया था।
सच में दोस्तो खून का रिश्ता ही सबकुछ नहीं होता है उसे भी बढ़कर इंसानियत होती है और सुलेखा और रवि का दिल इतना बड़ा था कि उन्होंने अपनी एक बहन को और दिल में बसा लिया था।
धन्यवाद
Pooja…